बुधवार, अप्रैल 07, 2010

पाश की याद

 
गत दिनों विकास संवाद के एक कार्यक्रम में शिरकत करने की गरज से मैं महेश्वर गया था। वहीं से ओंकारेश्वर में नर्मदा पर बन रहे बांध से विस्थापित होने वालों के गांवों में भी जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पता नहीं क्यों जिस दिन गांव वालों से मिला उसी दिन से अवतार सिंह पाश की कविता (हम लड़ेंगे साथी)बहुत याद आ रही है। महेश्वर से आने के बाद मैं काफी व्यस्त रहा लेकिन इस व्यस्तता में भी कविता के पुनर्पाठ के लिए व्याकुल रहा। जैसे ही फुर्सत मिली मैंने उक्त कविता को एक बार नहीं कई बार पढ़ा और चाहता हूं कि इसे दूसरे लोग भी पढे। 

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिये
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिये
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कंधों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्व से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाईयों का गला घोटने को मजबूर हैं
कि दफतरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है
जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे

3 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार

    BADHAI IS KE LIYE AAP KO

    SHAKHE KUMAWAT

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. जिन्दा है पाश। और रहेगा। जब तक आप जैसे कदरदान है। तभी मैं कहता हूँ। हे भगवान, पाश की आग, शिव का दर्द और पात्र के हर्फ दे, मेरा आज लिखने का मन है।

    दर्द से कूट कूटकर भरा हुआ था शिव बटालवी, शब्दों का खजाना है सुरजीत पात्र के पास। और पाश तो अद्भुत था।

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