दुनिया के बाकी देशों, खासकर गरीब और विकासशील देशों, को उदारवादी आर्थिक नीतियां अपनाने के लिए एक तरह से मजबूर करने वाले अमेरिका को अब स्वदेशी की चिंता सताने लगी है। उसने बाकयदा विधेयक पारित करके कांग्रेस (भारतीय राजनीतिक दल नहीं) को वही सामान और सेवाएं खरीदने के लिए बाध्य कर दिया है जो उसके देश में बनी या उत्पादित हुई हो। इतना ही नहीं 1941 से लागू बेरी अमेंडमेंट एक्ट के दायरे को भी बढ़ा दिया है। फलस्वरूप अब अमेरिकी गृह मंत्रालय भी केवल मेड इन अमेरिका उत्पाद ही खरीद सकेगा। पहले बेरी अमेंडमेंट एक्ट केवल रक्षा विभाग पर लागू था।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व अमेरिका ने वीजा शुल्क में बढ़ोत्तरी करके और अपने यहां काम करने वाली कंपनियों को टैक्स में राहत मुहैया कराकर भारत के आईटी सेक्टर को हतोत्साहित करने की कोशिश की थी।
मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के जनक और हिमायती अमेरिका के उक्त कदमों से हमारे देश को सबक लेना चाहिए, जो विदेशी कंपनियों के स्वागत के लिए हमेशा लाल कारपेट हाथ में लिए दौड़ता रहता है।
भारत के रहनुमाओं को भी अपने देश, यहां की कंपनियों, लघु उद्योगों और जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेना चाहिए न कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के दबाव में।
गुरुवार, सितंबर 16, 2010
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