शनिवार, मई 01, 2010

वागर्थ के अप्रैल अंक के आवरण पृष्ठ पर प्रकाशित

  तुम्हीं से मुक्ति पानी है तुम्हीं पर है फना होना
यह मुश्किल काम बाँहों में लिपटकर हो नहीं सकता।
अगर दुनिया बदलनी है तो दुनिया से अलग तो आ
यह दिलकश खेल घर दीवार रखकर हो नहीं सकता।
मुसीबत है कि हम अपने को अपनों में तलाशे हैं
यह जाहिर है कि कुछ भी यूँ सिमट कर हो नहीं सकता।
                                         -भगवान सिंह