गुरुवार, जनवरी 07, 2010

रुचिका कांड: राठौर की पत्नी और उनकी वकील आभा से चंद सवाल


तुम भी तो एक औरत हो आभा
तुम्हें तो पता होना चाहिए
इज्जत की अहमियत क्या है
भारतीय समाज में
जिस व्यक्ति को बचाने
तुम कर रही हो जीतोड़ कोशिश
उसे एकांत में दे पाती हो सम्मान
एक पति या बच्चों के पिता का?
अदालत से निकलते हुए
तुम्हारे चेहरे की बनावटी मुस्कान
कर रही थी चुगली
कि छुपा रही हो बहुत कुछ
सिर्फ चोर की दाढ़ी में नही होता तिनका
उसके साथी को भी सताता है भय
किसी भी क्षण पकड़े जाने का
और तुम तो बन चुकी हो संरक्षक
कोई अदालत नहीं दे सकती
तुम्हें इसके लिए सजा
तुम खुद बन जाआोगी
गुनहगार अपनी नजरों में

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच के अलग-अलग पहलू
    एक वकील एवं एक पत्नी के तौर पर आभा अपना फर्ज ही निभा रही हैं। इस केस से उपजी इस कविता से यह यह साफ होता है कि सच के कई पहलू हैं और सच को व्यक्ति उसी रूप में स्वीकार करता है, जिस रूप में उसे वह दिखाई देती है। यह दिखना सापेक्षता के नियम पर आधारित है। कविता अपने समय के यथार्थ को उजागर करती नजर आती है। आभा एक ऐसे मुकाम पर खड़ी नजर आती हैं, जहां से उनके लिए मार्ग का चयन बड़ा ही दुष्कर है।
    ‘महाभारत’ क्यों हुआ, इसके जवाब में उस प्रसंग का उल्लेख यहां जरूरी जान पड़ता है, जिसमें द्रोपदी दुर्योधन के लिए कहती हैं- अंधे का पुत्र अंधा। यह प्रसंग उस समय का है, जब पांडव हस्तिनापुर में अपने राजमहल का उद्घाटन करते हैं। इस राजमहल को ऐसा बनाया गया था कि जहां ठोस फर्श थी, वहां पानी झलकता नजर आता था और जहां पानी झलकता नजर आता था, वास्तव में वह फर्श होता था। दुर्योधन इसे समझ नहीं पाता है और आंखों से जैसा दिखा, वैसा फैसला कर राजमहल में जब आगे बढ़ा, तो वह शयनागार (तालाब) में फिसल जाता है और भीग जाता है। द्रोपदी इसे देख रही होती हैं। वह दुर्योधन की भाभी लगती हैं। इसके बावजूद उन्होंने एक ऐसी बात कह दी, जो भारतीय समाज के लिए आज भी अपाच्य है। जिस जन्मांध धृष्टराष्ट्र का नाम लिए बगैर द्रोपदी दुर्योधन पर कटाक्ष करती हैं, वे वास्तव में द्रोपदी के श्वसुर भी होते हैं। श्वसुर एवं देवर के लिए ऐसा अशोभनीय बर्ताव स्वीकार्य नहीं होता है। इसके फलस्वरूप ही दुर्योधन अपने मामा के सहयोग से वह काम करता है, जिससे भरी सभा में द्रोपदी को घसीटा गया और फिर बात महाभारत तक पहुंच गई। रुचिका-एसपीएस राठौर मामले में आभा का अपने पति के साथ खड़े होने की आज वही मजबूरी है, जो मजबूरी दुर्योधन के पक्ष में खड़े गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह एवं कर्ण जैसे योध्दाओं के समक्ष थी।

    तेज बहादुर यादव

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  2. तुम्हारे चेहरे की बनावटी मुस्कान
    कर रही थी चुगली
    कि छुपा रही हो बहुत कुछ
    सिर्फ चोर की दाढ़ी में नही होता तिनका
    उसके साथी को भी सताता है भय
    किसी भी क्षण पकड़े जाने का
    और तुम तो बन चुकी हो संरक्षक
    कोई अदालत नहीं दे सकती
    तुम्हें इसके लिए सजा
    तुम खुद बन जाआोगी
    गुनहगार अपनी नजरों में

    ekdam sateek

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  3. ऐसा क्यों सोचते हैं हम की आभा ने गलती की है या कर रही है.......हम उनके नज़रिए को उनके दर्द को महसूस नहीं कर सकते....उनके भीतर भी तो तिस होगी ना...क्या हम उनके ओर सहानुभूति की नज़र नहीं रख सकते
    और किस इज्ज़त की बात की जा रही है......सही मायने में रुचिका और उन जैसी लड़कियों की आत्म-हत्याओं का जिम्मेवार अकेला राठोर नहीं हम हैं आप है....हम उन्हें बताते हैं की कोई यौन प्रस्ताव या यौन सम्बन्ध उनकी इज्ज़त ख़तम कर देता है और वो समाज में जीने के काबिल नहीं
    मै क्षमा चाहता हूँ मगर आभा से पहले हमें खुद के अन्दर झांकना ही होगा वरना राठोर बचेंगे भी और रुचिका आत्म-हत्या भी करेगी

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