सोमवार, दिसंबर 28, 2009

प्रतिक्रिया

हमारे मित्र दिनेश कुशवाह ने वागर्थ के  अक्टूबर अंक में उदय प्रकाश प्रसंग पर, आज भी खुला है अपना घर फूकने का विकल्प, लम्बी कविता क्या लिख दी अब भाई लोग लट्ठ लेकर उन्हीं के पीछे पड़ गये हैं. कुछ लोग लिखकर खिलाफत कर रहें हैं तो कुछ फोन पर गरिया रहे हैं. फ़िलहाल मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि तीर निशाने पर लगा है.
आप भी यदि दिनेश कि लानत-मलानत करना चाहते  हैं तो देर किस बात कि है, हां लेकिन इसके लिए आपको उनकी कविता तो पढ़नी पढ़ेगी. इसके लिए आपको परेशां होने की जरूरत नहीं. भारतीय भाषा परिषद् की साईट http://www.bharatiyabhashaparishad.com/  पर जाईये और कविता हाजिर.

गुरुवार, दिसंबर 17, 2009

बहारों फूल बरसाओ..........

कोई व्यक्ति किन मन: स्थितियों में यह गीत गुनगुना सकता है, यह सभी को पता है। लेकिन मुझे यह गीत बरबस याद आ गया ,एक खबर को पढ़ते हुये। खबर थी, जबलपुर में इन्वेस्टर्स मीट की तैयारी के संबंध में। वहां के कलेक्टर ने एक बैठक बुलाकर अधिकारियों को आदेश-निर्देश तो दिया ही, नागरिकों से अपील भी की। उन्होंने यह चाहा है कि नगरवासी न सिर्फ अपने घरों की साफ सफाई करें अपितु इससे भी एक कदम आगे जाकर साज-सज्जा भी करें। कलेक्टर साहब यह चाहते हैं कि जो जिस भी स्थिति और मन: स्थिति में हो, पर वह उपरोक्त गीत को चरितार्थ करता नजर आये। 
कलेक्टर साहब ने नागरिकों से अपील कुछ इस तरह से की गोया शहर में कुछ उद्योगपति नहीं बल्कि स्वंय खुदा या फरिश्ते आ रहे हों ,लोगों की मन मांगी मुराद पूरी करने।
 खैर, हमारी संस्कृति में मेहमान को भी भगवान का दर्जा दिया गया है। अतिथि देवो भव। पर यहां लाख टके का सवाल यह है कि क्या इन्वेस्टर्स मीट में आने वाले उद्योगपति-व्यवसायी जबलपुर के निवासियों के लिये उसी तरह के मेहमान हैं , जिस तरह के मेहमान की छबि भारतीय जन-मानस में रची-बसी है?
  मेहमान फारसी का शब्द है और यह हिंदी पट्टी में फारसी के ही एक अन्य शब्द रिश्तेदार के समानार्थी के रूप में प्रयुक्त होता है। आमतौर पर लोग अपने रिश्तेदारों और नातेदारों को ही मेहमान या अतिथि मानते हैं। वैसे रिश्तेदार की बनिस्बत मेहमान शब्द का दायरा ज्यादा व्यापक है। मेहमान वह भी है जो अपना करीबी रिश्तेदार है और मेहमान वह भी है जिसका दूर-दूर से मेजबान से कोई रिश्ता नहीं है, लेकिन वह उसके दरवाजे पर आ खड़ा हुआ है। तो इस तरह से इन्वेस्टर्स मीट में आने वाले उद्योगपति-व्यवसाई जबलपुरियों के लिये दूसरे दर्जे के ही मेहमान हुये।
 तो फिर ऐसी स्थिति में एक और सवाल उपस्थित होता है कि आखिर जबलपुर के लोगों को इन्वेस्टर्स मीट मे आने वाले उद्योगपतियो की आवाभगत क्यों करनी चाहिये? शासन और प्रशासन के नजरिये से इसका सीधा उत्तर हो सकता है कि चूंकि उद्योगपति जब यहां उद्योग-धंधों की स्थापना करेंगे तो इस क्षेत्र का विकास होगा। यह जवाब सैद्धांतिक रूप से अपनी जगह सही हो सकता है। लेकिन व्यवहारिक जवाब ढूढऩे के लिये हमें उन क्षेत्रों पर नजर दौड़ाने की जहमत उठानी चाहिये जहां पहले से उद्योग-धंधे मौजूद हैं।
शासन और प्रशासन को चाहिये कि वह कुछ इस तरह की व्यवस्था बनाये ताकि वाकई में जहां उद्योग लगें उस क्षेत्र और वहां के लोगों का भी विकास हो सके। और यकीन मानिये जिस दिन ऐसा होने लगेगा उस दिन किसी कलेक्टर को अपील नहीं करनी पड़ेगी, लोग खुद ब खुद उद्योगपतियों-व्यवासाइयों की राह में फूल बरसाते हुये नजर आयेंगे।