गुरुवार, जनवरी 07, 2010

रुचिका कांड: राठौर की पत्नी और उनकी वकील आभा से चंद सवाल


तुम भी तो एक औरत हो आभा
तुम्हें तो पता होना चाहिए
इज्जत की अहमियत क्या है
भारतीय समाज में
जिस व्यक्ति को बचाने
तुम कर रही हो जीतोड़ कोशिश
उसे एकांत में दे पाती हो सम्मान
एक पति या बच्चों के पिता का?
अदालत से निकलते हुए
तुम्हारे चेहरे की बनावटी मुस्कान
कर रही थी चुगली
कि छुपा रही हो बहुत कुछ
सिर्फ चोर की दाढ़ी में नही होता तिनका
उसके साथी को भी सताता है भय
किसी भी क्षण पकड़े जाने का
और तुम तो बन चुकी हो संरक्षक
कोई अदालत नहीं दे सकती
तुम्हें इसके लिए सजा
तुम खुद बन जाआोगी
गुनहगार अपनी नजरों में

शनिवार, जनवरी 02, 2010

कविता

जब नाजी कम्युनिस्टों के पीछे आए
मैं खामोश रहा
क्योंकि, मैं नाजी नहीं था
जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
मैं खामोश रहा
क्योंकि, मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था
जब वे यूनियन के मजदूरों के पीछे आए
मैं बिल्कुल नहीं बोला
क्योंकि,मैं मजदूर यूनियन का सदस्य नहीं था
जब वे यहूदियों के पीछे आए
मै खामोश रहा
क्योंकि, मैं यहूदी नहीं था
लेकिन, जब वे मेरे पीछे आए
तब बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि, मैं अकेला था
         -पीटर मार्टिन जर्मन कवि